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ख़ाली
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मंद हवा के इन झोकों के लुत्फ़ का भी वक़्त नहीं
थक हार कर फ़ुर्सत की दो साँसों का है वक़्त नहीं
बादल की इन दो बूंदों के रस का भी तो वक़्त नहीं
दोस्त है अपने म...
10 years ago
अहम् कबीरा !
ये करूँगा! वो करूँगा! ये चाहता हूँ ! वो चाहता हूँ ! यार मैं लाइफ में कुछ करना चाहता हूँ । पर टाइम कहाँ है। आज दोस्तों से गप्पें मारनी है। facebook पे chat करनी है। आज बड़ी अच्छी फिल्म आई है, वो देखनी है। तो लाइफ में जो करना है वो कब करें? टाइम कहाँ है?
बिजली नहीं गिरेगी आसमान से। न धरती फटेगी। कोई बाहर से आके याद नहीं दिलाएगा। जो करना है, कर डालो। आज। अभी। इसी वक्त। कबीर का वो दोहा केवल रटने के लिए नहीं था। उसका कुछ मतलब भी था, कुछ भाव भी था। जो 'कल' आने वाला है, वो कल ही आ जायेगा और 'आज' बन जायेगा। और आज तो हमें कुछ काम करने का मन होता नहीं। है न? कल कर लेंगे।
आज और कल में फर्क क्या है। यही है कि कल पर काम टाला जा सकता है क्यूंकि वो अभी सामने नहीं है। और जब सामने आ जाता है तो कल कल नहीं रहता, आज बन जाता है। तो इसलिए हम अनिश्चित काल तक कल पर काम डालते रहेंगे। पर एक दिन ऐसा भी आयेगा, जिसके आगे टालने के लिए कल नहीं होगा। उस दिन क्या करोगे? सोचा है ? सोचो मत। शुरू करो।
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